मदद मांगती नज़रे
July 11, 2011 2 Comments
ज़िन्दगी और मौत के बीच बस लम्हे भर का फासला है . जैसे ख़ुशी और गम के बीच बस एक कदम का.
रविवार की दोपहर कानपूर – फतेहपुर ट्रेन रूट के बीच मालवा में जो कुछ हुआ उसके बाद ज़िन्दगी की इबारत और साफ़ नज़र आने लगी .
हादसे का शिकार हुई कालका मेल से उतारी गयी शाहीन उस tenage गर्ल का नाम है , जो वहां घंटो अपने भाई और माँ के लिए तड़पती रही ,
जिसके साथ वो सफ़र कर रही थी और हादसे के बाद से उनका कोई अता और पता नहीं था .
शाहीन जैसे कई teenage और बच्चे भी थे जो जर्नी के समय कितना खुश थे .वो मनचाहे लंच के लिए अपने parents से फरमाइश कर रहे थे .
लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनकी ख़ुशी पर बहोत बड़ा दर्द छा जायेगा .
ऐसी ही ख़ुशी चार दिन पहले बस में बैठे उन बरातियो के चेहरों पर भी थी , जिनकी मौत कासगंज इलाके में एक अनमैंड क्रोसिंग पर मथुरा – छपरा एक्सप्रेस के टकराने से हो गई थी.
ट्रेन हादसों की संख्या घटने की जगह और ज्यादा होती जा रही है ..
एक तरफ हम हाईटेक होते जा रहे हैं , दोसरी तरफ ऐसी गलतियों की भरमार हो गई है जिसका नतीजा तबाही की शक्ल में सामने आ रही है .
शाहीन जैसे किसी भी बच्चे या teenage का क्या कुसूर था कि असमय ही उसे इतना बड़ा दर्द सहने के लिए अभिशप्त होना पड़ा . हम सुविधा नहीं सुरक्षा की नज़र से भी ट्रेन में सफ़र ज्यादा पसंद करते हैं लेकिन , यदि मौत का खेल ऐसे ही चलता रहा तो सफ़र करने की हिम्मत कौन जुटा पाएगा . इन हादसों के बाद दोसरी ट्रेनों से यात्रा करने के लिए अलग -अलग रेलवे स्टेशन पर मजूद लोगो से जब पूछा गया तो ज्यादातर डरे – सहमे थे . उनके कानों में वो चीखे मिट नहीं रहीं . वो भूल नही पाएंगे .
कोई मुआवज़ा दर्द को भरने में कामयाब होने वाला .कोई जांच , कोई रिपोर्ट उन लोगो को वापस नहीं ला सकती , जो हादसों में जान गवां चुके हैं . इंडिया कि लाइफ लाइन बन चुकी ट्रेनों को आखिर कब सुरक्षा ज़ोन में रखा जा सकेगा .
कब कोई यात्री ट्रेन में सफ़र करने वाले यह सोच कर सफ़र करेंगे कि वो अपनी मंजिल पर हिफाज़त से जा पाएंगे …….Sumbul