मदद मांगती नज़रे

ज़िन्दगी और मौत के बीच बस लम्हे भर का फासला है . जैसे ख़ुशी और गम के बीच बस एक कदम का.
रविवार की दोपहर कानपूर – फतेहपुर ट्रेन रूट के बीच मालवा में जो कुछ हुआ उसके बाद ज़िन्दगी की इबारत और साफ़ नज़र आने लगी .
हादसे का शिकार हुई कालका मेल से उतारी गयी शाहीन उस tenage गर्ल का नाम है , जो वहां घंटो अपने भाई और माँ के लिए तड़पती रही ,
जिसके साथ वो सफ़र कर रही थी और हादसे के बाद से उनका कोई अता और पता नहीं था .
शाहीन जैसे कई teenage और बच्चे भी थे जो जर्नी के समय कितना खुश थे .वो मनचाहे लंच के लिए अपने parents से फरमाइश कर रहे थे .
लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनकी ख़ुशी पर बहोत बड़ा दर्द छा जायेगा .

ऐसी ही ख़ुशी चार दिन पहले बस में बैठे उन बरातियो के चेहरों पर भी थी , जिनकी मौत कासगंज इलाके में एक अनमैंड क्रोसिंग पर मथुरा – छपरा एक्सप्रेस के टकराने से हो गई थी.
ट्रेन हादसों की संख्या घटने की जगह और ज्यादा होती जा रही है ..
एक तरफ हम हाईटेक होते जा रहे हैं , दोसरी तरफ ऐसी गलतियों की भरमार हो गई है जिसका नतीजा तबाही की शक्ल में सामने आ रही है .

शाहीन जैसे किसी भी बच्चे या teenage का क्या कुसूर था कि असमय ही उसे इतना बड़ा दर्द सहने के लिए अभिशप्त होना पड़ा . हम सुविधा नहीं सुरक्षा की नज़र से भी ट्रेन में सफ़र ज्यादा पसंद करते हैं लेकिन , यदि मौत का खेल ऐसे ही चलता रहा तो सफ़र करने की हिम्मत कौन जुटा पाएगा . इन हादसों के बाद दोसरी ट्रेनों से यात्रा करने के लिए अलग -अलग रेलवे स्टेशन पर मजूद लोगो से जब पूछा गया तो ज्यादातर डरे – सहमे थे . उनके कानों में वो चीखे मिट नहीं रहीं . वो भूल नही पाएंगे .
कोई मुआवज़ा दर्द को भरने में कामयाब होने वाला .कोई जांच , कोई रिपोर्ट उन लोगो को वापस नहीं ला सकती , जो हादसों में जान गवां चुके हैं . इंडिया कि लाइफ लाइन बन चुकी ट्रेनों को आखिर कब सुरक्षा ज़ोन में रखा जा सकेगा .
कब कोई यात्री ट्रेन में सफ़र करने वाले यह सोच कर सफ़र करेंगे कि वो अपनी मंजिल पर हिफाज़त से जा पाएंगे …….Sumbul

MY HEAVEN Poetry by Rabindranath Tagore

where the mind is without fear and the head is held high ;
where knowledge is free;
where the world has not been broken up into fragments by narrow domestic walls;
where words come out from the depth of truth;
where tireless striving stretches its arms towards perfection;
where the clear stream of reason has not lost its way
into the dreary desert sand of dead habit;
where the mind is led forward by Thee into ever- wideing
thought and action –
Into that heaven of freedom , my father ,let my country awake .- Rabindranath Tagore